महामृत्युंजय मंत्र का जप क्यों किया जाता है?
शास्त्रों और पुराणों में असाध्य रोगों से मुक्ति और अकाल मृत्यु से बचने के लिए महामृत्युंजय जप करने का विशेष उल्लेख मिलता है।
महामृत्युंजय भगवान शिव को खुश करने का मंत्र है। इसके प्रभाव से इंसान मौत के मुंह में जाते-जाते बच जाता है, मरणासन्न रोगी भी महाकाल शिव की अद्भुत कृपा से जीवन पा लेता है। बीमारी, दुर्घटना, अनिष्ट ग्रहों के प्रभावों से दूर करने, मौत को टालने और आयु बढ़ाने के लिए सवा लाख महामृत्युंजय मंत्र जप करने का विधान है।
जब व्यक्ति जप न कर सके, तो मंत्र जप किसी योग्य पंडित से भी कराया जा सकता है।
समुद्र मंथन के बहुप्रचलित आख्यान देवासुर संग्राम के समय शुक्राचार्य ने अपनी यज्ञशाला मे इसी महामृत्युंजय के अनुष्ठानों का उपयोग देवताओं द्वारा मारे गए राक्षसों को जीवित करने के लिए किया था। इसलिए इसे मृत संजीवनी के नाम से भी जाना जाता है। महामत्युंजय मंत्र इस प्रकार है ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!
पद्मपुराण में महर्षि मार्कण्डेय ने भी महामृत्युंजय मंत्र व स्त्रोत का वर्णन किया है। इस पुराण में मिले वर्णन के अनुसार महामुनि मृकण्डु के कोई संतान नहीं थी। इसलिए उन्होंने पत्नी सहित कठोर तप करके भगवान शंकर को खुश किया। भगवान शंकर ने प्रकट होकर कहा- तुमको पुत्र प्राप्ति होगी पर यदि गुणवान, सर्वज्ञ, यशस्वी, धार्मिक और समुद्र की तरह ज्ञानी पुत्र चाहते हो, तो उसकी आयु केवल 16 साल की होगी और उत्तम गुणों से हीन, अयोग्य पुत्र चाहते हो, तो उसकी उम्र 100 साल होगी। इस पर मुनि मृकुण्डु ने कहा- मैं गुण संपन्न पुत्र ही चाहता हूं, भले ही उसकी आयु छोटी क्यों न हो। मुझे गुणहीन पुत्र नहीं चाहिए। मुनि ने बेटे का नाम मार्कण्डेय रखा। जब वह 16 वे साल में प्रवेश हुआ, तो मृकुंड चिंतित हुए और उन्होंने अपनी चिंता को मार्कण्डेय को बताया। मार्कण्डेय ने भगवान शंकर को खुश करने के लिए तप किया तो भगवान शंकर शिवलिंग में से प्रकट हो गए। उन्होंने गुस्से से यमराज की तरफ देखा, तब यमराज ने डरकर बालक मार्कण्डेय को न केवल बंधन मुक्त कर दिया, बल्कि अमर होने का वरदान भी दिया और प्रणाम करके चले गए। अनुष्ठान कराने के लिए संपर्क करे।
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